😀कुछ बचपन के पल😀
बचपन के दिन बड़े अनोखे,
रहली खेलत अक्का बक्का।
सोर्रा, कौड़ी, छ कबड्डी,
आख मुदलिया होता तक्का। ।
खाते बेर, मकोइया, मक्का,बजरा, ज्वार भुजाते भठ्ठा।सांभर , कोदौ वाला भतवा,सरपोटते थे मिलाके मठ्ठा।।
मुंडा, बंदिया दुगो बरधा,
कितना बढ़िया रहली जोड़ी।
बोतला बछवा था छरकनिया,
डोंगरी गइया सींग से डोड़ी।।
बोखऊ बब्बा कहते किस्से,संझा आग के कौड़ा बारी।कितनें कक्का, दद्दा आते,बनि बनिके सब दरबारी।।
रहली लावत चना उपारी,
बड़ होरहा आग भुजाला।
लहसुन धनिया मिर्च पिसाके,
अति बड़े स्वाद से खाला।।
सुबह सुबह उठती थी दादी,पीसे जांत से पिसना।दादा उठी कबार डालते,घूमें आते कक्का किसना।।
अरे उ गरमी के मौसम में,
तेंदू क पत्ता लाते थे।
सरिया सरिया बनाके गड्डी,
दुपहरिया तप जाते थे।।
जब आता बरषा मौसम,बढ़ जाते थे नदिया नाला।डूब डूब पन डूबिया खेलते,आके घरवा खूब पिटाला।।
गोरसी पर उ पाकल दूधवा,
पों पों वाला बरफ मलाई।
दोहनी में उ लगल कोरोनी,
भरि भरि सुतुई से खाई।।
उ सब दिनवा गुजरि गवा,कितना याद आवत बा।कारुष पता नहीं कब लौटी,सोचि सोचि दिल गावत बा।।
रचनाकार
कमलेश कुमार कारुष
बबुरा रघुनाथ सिंह , ब्लाक हलिया
जनपद मीरजापुर

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