ॐ भूर्भुव: स्व: तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो न: प्रचोदयात्।

हिंद संस्कृति नेह का,मृदुल मधुर अहसास - महेन्द्र कुमार

हिंद संस्कृति नेह का,मृदुल मधुर अहसास 
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निज संस्कृति अनन्या धरोहर,
नैतिक कर्तव्य वंदन संभाल ।  
अंतर अथाह प्रेम भाईचारा,
आभा अनूप नागरिक भाल ।
गंगा सदृश पुनीत पावन,
दर्शन धर्म कर्म उल्लास ।
हिंद संस्कृति नेह का,मृदुल मधुर अहसास ।।

शीर्षस्थ स्वर्णिम इतिहास ,
भव्य गौरव गाथा गुणगान ।
निर्वहन संस्कार मर्यादा परंपरा,
अपनत्व अनंत आह्वान ।
रग रग समाहित देश प्रेम,
सर्वत्र प्रसरित दिव्य उजास ।
हिंद संस्कृति नेह का,मृदुल मधुर अहसास ।।

उत्सर्ग सह उत्कर्ष आर्तभाव,
आनंद अथाह प्रदायक।
प्रशस्त आध्यात्म योग मार्ग,
वैचारिक उन्नता विधायक ।
सर्व धर्म समभाव छटा,
असीम खुशियां रज रज वास  ।
हिंद संस्कृति नेह का,मृदुल मधुर अहसास ।।

दुनिया परम आकर्षण केन्द्र ,
जीवंतता प्रेरक पहचान  ।
प्रदत्त सुख समृद्धि वैभव,
अभिरक्षित राष्ट्र स्वाभिमान ।
अनवरत स्नेहिल अठखेलियां ,
सर्व प्रगति उन्नति अभिलाष ।
हिंद संस्कृति नेह का,मृदुल मधुर अहसास ।।

महेन्द्र कुमार
(स्वरचित मौलिक रचना)

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