ॐ भूर्भुव: स्व: तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो न: प्रचोदयात्।

एक पल का सुकून-प्रतिभा पाण्डेय "प्रति" चेन्नई

शीर्षक:-एक पल का सुकून।


हॉं-हॉं तुम, बहुत भोले,
बड़े नादान हो ,
सब में जो वफा ढूंढ रहे हो! 
बड़ी सादगी भेष में, 
सरलता की आस कर रहे हो। 
जमाना अब पहले सा नहीं रहा,जान लो ,
दुनिया जहर-सी और तुम अमृत समझ रहे हो ।
बेमौसम यहाँ भी कभी बरसात हो जाती है ,
खौफनाक कभी भी वारदात हो जाती है,
बेखौफ तुम पर हमें ऐतबार है, 
ये जिस्मानी नहीं रूहानियत प्यार है,
चिराग बुझाकर लोग माचिस मांगेंगे तुमसे, 
तुम नासमझ!
समझोगे आग की दरकार है।
रिश्तों की परिभाषा बदल गई, 
घर आंगन की भाषा बदल गई,
तुम वहीं अभी खोई खडी हो आज भी! 
आशीष से नाम आशा बदल गए ।
दिखाकर प्रेम आखिर का पड़ाव मांगते हैं, 
तेरे ही जिस्म से सौदागर चढ़ाव मांगते हैं,
एक पल का सुकून,
 जीना हराम जीवन भर, 
सूखते गम को हर बार,
कुरेदकर घाव टाँकते हैं ।

(स्वरचित मौलिक)
प्रतिभा पाण्डेय "प्रति"
चेन्नई

Post a Comment

0 Comments