ॐ भूर्भुव: स्व: तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो न: प्रचोदयात्।

कौन है जिम्मेदार?-प्रतिभा पाण्डेय "प्रति" चेन्नई

कौन है जिम्मेदार?

एक नेकदिल ने दुखती रग पर हाथ रख दी,
आँसुओ में डूबकर सारी बात कह दी। 
कैसे आसान था जीवन आज तमाम है, 
नादान लडकी अब वेश्यागमन कर ली। 
पाउडर ,बिन्दी और होंठलाली, 
तैयार हो अप्सरा लगी गली भी। 

एक टांग ऊपर एक भू पर सुसज्जित,
हाथ पसारे, बेबस में भी लगती भली थी। 
आकर्षित करता चकाचौंध वेश्यालय,
सिसकारी भरी आह और अदा पर, लट्टू पूंजी वाले। 
मुॅह मांगी रकम पर बेचती अपना धरम, 
छिप-छिपाकर रोज आते इज्ज़त वाले। 

मतलबी झूठा प्रेम दिखाकर बेच गया,
हवसी आकर भूख मिटाकर चला गया!  
रिश्ते में सन्तुष्टि मिलती कहाँ है बाबूजी? 
सब हैवान एकाध भला इंसान मिलता गया ।

नर्क में जीने से ज्यादा मरने के विचार भरने आए, 
हर क्षण खामोश, हिस्से हमारे पतझर ही आए  
रोज मरते, फिर जिन्दा नसीब और पेट कर देती है,
व्याकुल मन की व्यथा आखिर किसको सुनाए ?
कैसे अपने को पाकर पुनः जिन्दा हो पाए.........।

वेश्या हो या आम औरतें टुकड़े-टुकड़े में बंट गईं, 
तुम पतली,तुम कुरूप,तुम छोटी तुम...ऐसे छंट गईं,
आँसू भरी सिसकियॉ,वेदनाओं का अथाह समन्दर बढ़ता गया, 
प्रेम, सम्मान अपनापन, चंचलता, बचपना बस घटती गई !
व्याकुल अन्तर्मन पूछता,
कौन है जिम्मेदार?
ऐसी घिनौनी जिन्दगी का?
स्वच्छन्द वेश्या,समाज या संविधान? ???

(स्वरचित)
प्रतिभा पाण्डेय "प्रति"
चेन्नई

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