ॐ भूर्भुव: स्व: तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो न: प्रचोदयात्।

नहीं नहीं प्रिये!


#दिनांक:-24/5/2024
#शीर्षक:-नहीं-नहीं प्रिये!

ध्रुव तारा को देखो प्रिये ,
अडिग अपनी जगह खड़ा ।
निश्छल निश्चिंत निर्विवाद,
चाह की राह में शून्य-सा पड़ा।

मौसम का किरदार साथी बनता,
कभी गरजता कभी तपन चुनता।
याद झरोखे पर, भाव दरवाजे पर,
प्रेम, प्रेम को चाँद सितारों से बुनता।

गहरा कितना भेदना मुश्किल,
जैसे अंधेरे में चलना मुश्किल।
गम खुशी क्रमशः आते- जाते,
अस्थिरता ऐसी कुछ कहना मुश्किल।

बातों की बहती रसधार अनवरत ,
स्नेहिल खुमार परत-दर-परत,
एक पल की दूरी प्रतीत अनगिनत साल,
ओह मोहब्बत से दूरी जीवन होगा नरक।

नहीं- नहीं प्रिये!
कभी न विछोह की कसम खाते हैं,
तेरे बिना खुद को अधूरा-सा पाते हैं
प्रेम की सोंधी खुशबू बिखरी सॉंसों में,
चल एक-दूजे की बाँहों में समा जाते हैं ।

(स्वरचित)
प्रतिभा पाण्डेय "प्रति"
चेन्नई

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