
इस सम्मेलन में संयुक्त राष्ट्र के 193 देशों ने चर्चा की कि वर्ष 1988 में अंतरराष्ट्रीय दूरसंचार संघ (आईटीयू) द्वारा मेलबोर्न में पुराने जमाने की टेलीफोन सेवा को नियंत्रित करने हेतु बनाई गई नियामक व्यवस्था को इंटरनेट पर लागू किया जाना चाहिए या नहीं। इंटरनेट आने के बाद से इस समझौते पर विचार नहीं किया गया। इससे पहले वर्ष 1988 में इस संधि पर विचार किया गया था। संयुक्त राष्ट्र संघ के अनुसार विकसित एवं विकासशील देशों में संचार सेवाओं के विस्तार और संचार सेवाओं के अंतर्गत सुरक्षा से जुड़े प्रश्नों के भी शामिल हो जाने के कारण इंटरनेट के नियमन से जुड़े सभी प्रश्नों पर चर्चा हेतु सम्मेलन एवं एक अंतरराष्ट्रीय संधि की आवश्यकता थी।
वर्ष 2012 की संयुक्त राष्ट्र संघ की दूरसंचार संधि के मुख्य बिंदु-
- मोबाइल कंपनियों द्वारा रोमिंग चार्ज पर पुनर्विचार किया जाना है और इसे अधिक पारदर्शी बनाया जाना है।
- इस समझौते के अनुसार निकट भविष्य में विश्व के सभी देशों हेतु ऐसा एक ही मोबाइल टेलीफोन नंबर होगा जिस पर आपातकालीन सेवाओं के लिए कॉल की जा सकेगी। नए नियम इंटरनेट पर भी लागू होने हैं।
- सभी देशों से सिफारिश की गई है कि वह आईटीयू के जनादेश के दायरे में रहकर इंटरनेट के संबंध में सार्वजनिक नीति के मुद्दों पर खुद ही निर्णय ले सकते हैं।
अंतरराष्ट्रीय दूरसंचार संघ (आईटीयू): अंतरराष्ट्रीय दूरसंचार संघ (आईटीयू) सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी की शीर्ष संयुक्त राष्ट्र एजेंसी है। यह संचार और दूरसंचार के अंतरराष्ट्रीय मानकों का नियमन करती है। इसकी स्थापना अंतरराष्ट्रीय टेलीग्राफ यूनियन के रूप में 17 मई, 1865 को स्विट्जरलैंड के जेनेवा में की गई। विश्व के 193 देश अंतरराष्ट्रीय दूरसंचार संघ के सदस्य हैं।
अंतरराष्ट्रीय दूरसंचार संघ (आईटीयू) के कार्य:
- रेडियो आवृत्तियों को निश्चित करना तथा निर्दिष्ट रेडियो आवृत्तियों का आलेखन करना।
- सुचारू सेवा के साथ-साथ दूरसंचार की यथासंभव न्यूनतम दरें बनाए रखने की कोशिश करना और दूर संचार संघ के आर्थिक प्रशासन को स्वतंत्र एवं सुस्पष्ट आधार प्रदान करना।
- दूरसंचार के दौरान जीवन को किसी प्रकार से क्षति न पहुंचे, इस दृष्टि से विभिन्न उपाय खोजना तथा उन उपायों को लागू करने के उपरांत उनका विस्तार करना।
- दूरसंचार प्रणाली संबंधी विभिन्न अध्ययन करके उपयुक्त सिफारिशें करना तथा इससे संबंधित विभिन्न सूचनाओं को इकठ्ठा करके प्रकाशित करना ताकि सदस्य देश उक्त सूचनाओं से लाभ उठा सकें।
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