चंद्रलोक में शैर
एक दिन निकला मै बाहर,पैदल लेकर साइकिल।तब तक आई जोर से आंधी,उड़ा चली जो लेकर महफिल।।
आसमान के पथ पर मैं,साइकिल चला रहा जोरों से।धीरे-धीरे चंद्रलोक में पहुंचा,आंधी के झकझोरों से।।
चंद्रलोक में बड़ी चट्टानें,उबड़-खाबड़ पर्वत।प्यास लगी थी बड़े जोर की,जिसे बुझाई पीके शर्बत ।।
घूम घूमके देखा सब कुछ,दिखती धरती नीली।नीला ग्रह यूं तभी तो कहते,जो हरी भरी अति पीली।।
एकाएक मैं गिरा वहां पर,जहं धरती पर सूता भूत।जागके मुझसे गया बाज वह,मैं भी बाजा लगाके बूत।।
एकाएक मैं भाग चला,तेजी तेजी पैर उठाकर।फिर बाज रहा था मुझसे,तोड़ा दांत मारके झापर।।
नी नी नी नी रो करके,मुझे उठाकर फेंका।एकाएक यूं आंख खुली तो,झूठ मूठ का सपना देखा।।
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रचनाकार
कमलेश कुमार कारुष
प्राथमिक विद्यालय किरका
ब्लाक हलिया
जनपद मीरजापुर
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