पत्थरों ने ही तो झरनों को और भी सुरीला ,सुहाना बना दिया ।
तपाकर आग ने सोने को प्यारा सा गहना बना दिया।।
किसी से एक नजर क्या मिली उस नजर का दीवाना बना दिया।
अभी नजर भर के देखा भी ना था कि जमाना ने फसाना बना दिया।।
वह करते रहे रोज इशारे जाने किस नजर से।
जब मिलने की बात आई तो इक बहाना बना दिया ।।
नजरो से नजरों में बसाकर किसी ने नजरों का निशाना बना दिया ।
एक शायरी क्या उन पर लिखी लोगों ने तराना बना दिया ।।
जो, घायल परिन्दा,के सिवा किसी को समझते नहीं थे।
वक्त ने आज उनको कितना सयाना बना दिया।।3
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| हरेन्द्र विक्रम सिंह गौर ,घायल परिन्दा |


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