बचा ले अब अरे शासक,कभी तो ध्यान कर उनका।
मरे हैं जो सफेदी में, कभी सम्मान कर उनका।
अरे तू बैठ दफ्तर में,
बहुत कुछ झूठ कहता है।
जरा सोचो कि इक फौजी,
मगर किस भांति रहता है।
नहीं जाने घरों के सुख,
हमारे हेतु लड़ता है।
बिना डर के वनों में वह,
दिखाई वीर पड़ता है।
लड़े हैं जो अभी तक भी,कभी तो गान कर उनका।
लड़े हैं जो सफेदी पर,..................................
अगर दस लाख रुपयों में,
खरीदोगे शरीरों को।
नहीं होंगी उन्हें खुशियां,
करो अब बंद तीरों को।
किसी भी दिन करोगे तुम,
अगर आजाद बस सेना।
खतम होगा समर खूनी,
नहीं होगा खुशी देना।
समर हो ना कभी बिल्कुल ,यही तू मान कर उनका।
मरे हैं जो सफेदी में ,........................
नहीं मैं देख सकता हूं,
अभी तो और रोना नित।
जरा देखो जरा सोचो,
नहीं यह खेल है पट चित।
नहीं हंसता कभी बच्चा,
छठे का , रो रहा है अब।
कभी भाई कभी पापा,
हमेशा खो रहा है अब।
बचा ले हेमराजों को,नहीं सिर दान कर उनका।
मरे हैं जो सफेदी में ,........................
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सादर,
बालकवि स्वप्निल शर्मा
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