मौत तो मौत
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मौत आने का
इंतजार ही क्यों!!
जन्म के साथ जुड़ी है
एक वेवक्त की कड़ी
जो जिंदगी के
साथ है और बाद भी।
मौत मृत्यू है
जो अमूक है और सचेत भी,
कुछ मौतें अनायास
तो कुछ स्वैच्छिक व
स्वाभाविक और कुछ
शारीरिक व्याधातीत रोग
उद्यातन मृत्यू शयशया पर
पड़े मौत के इंतजार।
पर मौत ही नहीं,
कुछ तो पूर्व के कर्मो की
सजा व्यतन और कुछ
तनिक ठोकर पर
टूनुक से स्शर्गारोही बन चले।
बस मौत आने की
इंतजार ही क्यों!!
मौत तो संत्वना भी
बस यूं कह जाते हैं----
बयों बृद्ध की मौत
शोक की गहरी छाप नहीं,
पर अलपायू तो काफी
हृदयविदारक लम्बी समय तक।
यदि मानविक भूल जाना
नहीं होता तो जीना
नदारथ होना तय हीं,
मौत परम सत्य निश्चित है,
तो ये जीना जियो
खुशियों में आनंदमय हो
मौत आये तो आये
पीछे झोड़ जाये अमरत्व की
साज सजावट में
अपनी सुकर्म-धर्म की
प्रतीक चिन्हों की तरह
पुनः मौत आने की
इंतजार ही क्यों!!!
मन मचलते हैं और
जी लूं मौत न आने तक,
दीर्घायु हो सत्यार्थ के
लिए जब जब आये,
अनेकों अपदायें घेरे
अंधेरी काली घटाओं के
ताने बाने बुनके जीवन
को संतत्प में घीर जाने,
दृढ़ संकल्प से जीना है,
तनिक भी दुख दर्द आशाओं
के साथ,हंसके जी लूं
हर किसी के खुशियों में,
मौत तूझे अनेकों नमो नमः
जब भी आना और
ले जाना नर्क या स्वर्ग
मेरी शोक है मेरी कर्म फलों की
हंसते खिले लह लहाते बगियों में।
तो मैं मौत के इंतजार
ही क्यों करूं !!!!!!
सच्चिदानंद किरण

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