लेख: क्यों बढ़ रहे हैं वृद्धाश्रम
माता पिता प्रथम पूज्य देव माने गए हैं । प्राचीन काल से ही बच्चों को इस तरह की विद्या मिली कि वह अपनी माता-पिता और गुरुजनों का आदर करते थे। भगवान राम ने तो पिता की आज्ञा मानकर वनवास का भी दुख भोगा।
त्रेता युग में अहंकारी बेटों में कसं और दुर्योधन का उदाहरण सभी के सामने है। एक ने पद की लालसा में पिता को जेल में डाल दिया जबकि दूसरा खुद पिता की अंधी महत्वाकांक्षा का शिकार होकर को कौरव वंश के पतन का कारण बना।
अंग्रेजी शिक्षा के बाद धीरे-धीरे समाज में नैतिकता का पतन होने लगा । पाशश्चात देशों के बच्चे माता पिता से अलग ही जीवन बिताते हैं ।भारत से गए कुछ युवा यहां पर भी ऐसा करने लगे।
आज की बेटियां बहू बनकर सास-ससुर से अलग रहना चाहती हैं ।भोले माता पिता अपनी जायदाद बेटोके नाम कर देते हैं और नालायक बेटे उन्हे घर से निकाल देते हैं। ऐसे में वृद्धों के रहने के लिए वृद्ध आश्रम की आवश्यकता महसूस हुई।
हमारी पीढ़ी के समय में वृद्धाश्रम तेजी से बढ़ रहे हैं। कुछ माता पिता बेट बहुओं के दुर्व्यवहार के कारण स्वयं ही वृद्ध आश्रम चले जाते हैं तो कुछ को नालायक बेटे छोड़ आते हैं।
आज की स्थिति और भी भयावह होती जा रही है। मोबाइल और इंटरनेट के युग में बच्चे वही व्यस्त रहते हैं, तो मां बाप भी उन्हें प्यार और समय नहीं दे पाते। इसी अभाव में नौकरी और शादी के बाद युवा अपनी माता-पिता को बोझ समझने लगते हैं। अपना परिवार बढ़ने के कारण और घर छोटा होने के कारण ही वृद्ध आश्रम तेजी से बढ़ रहे हैं।
हमें अपनी शिक्षा प्रणाली इस तरह से बनानी होगी जिसे नैतिक पतन की तरफ जा रही युवा पीढ़ी को रोका जा सके । वह माता-पिता की सेवा कर सकें। माता पिता तो जीवित देवता होते हैं ,उनकी अवहेलना कभी भी समाज को उन्नति की ओर नहीं ले जा सकती ।युवा पीढ़ी को चाहिए कि वह माता-पिता की पूजा करें उन्हें सहारा दें प्यार दे ताकि इनकी छांव देश को पुरातन गौरव वापस दिला सके और वृद्धा आश्रम की आवश्यकता ही ना पड़े।
© आलोक अजनबी

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