शीर्षक:-कब तक
जब भी देखता हूँ तुम्हें ,
हाँ, हर पल नई सी लगती हो ,
परी हो या हो अप्सरा कोई !
तेरे बिना मेरे दिल में,
कुछ कमी सी लगती है ।
कह नहीं पाता कुछ भी तुमसे ,
पर कहता हूँ बहुत कुछ जरूर तुमसे ,
बात अलग है अकेले में कहता हूँ,
प्रेम करता हूँ बेपनाह तुमसे ।
इस आईने में बस गए हो जब से ,
कुछ और दिखता ही नहीं तब से ,
बेचैनियाँ समा गई हैं मुझ में ,
दिल दिल के सहारे,
के इंतजार में है तब से ।
मेरी मुहब्बत कब समझ पाओगी?
बिन बोले मुझे, कब सुन पाओगी?
कतरन सा हाल हुआ जा रहा,
ओ घड़ी कब आयेगी,
जब तुम भी मुझे चाहोगी ?|
(स्वरचित)
प्रतिभा पाण्डेय "प्रति"
चेन्नई


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