ॐ भूर्भुव: स्व: तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो न: प्रचोदयात्।

पता नहीं था शायद!-प्रतिभा पाण्डेय "प्रति" चेन्नई

शीर्षक:-पता नहीं था शायद!

सपनों के पीछे-पीछे जी भर दौड रहे हैं, 
बहुत कुछ अगल-बगल से फालतू जानकर छोड़ रहे हैं, 
मंजिल का कोई ओर- छोर नहीं,
अनजान हम अनजानी राहों पर दौड रहे हैं,

क्या खोया?
खबर नहीं खुद को ही,
पर क्या पाया गिनाए जा रहे हैं, 
जिनके साथ सफर में हैं, 
उन्हीं को हराने का प्रयास किये जा रहे हैं।

मेहनत हो या मतलब, 
बस यूँ ही किये जा रहे हैं,
जोकर नहीं होता किरदार किसी का , पर
सबके इशारों पर जोकर बने जा रहे हैं।

दूर बहुत दूर विनोद से जिन्दादिली, 
गुमसुम इंसान आज तन्हा हुए जा रहे हैं।
अपनी दुखती रग को छुपाए रखने की, पुरजोर कोशिश,
अहम का सहारा लिए,
उबलकर बाहर गिरे जा रहे हैं।

एक पल ऐसा जरूर आयेगा जीवन में, जब
दौड़ते-दौड़ते कभी जो थककर रूकेंगे,
दो पल पीछे जरूर पहुंच जाएंगे, 
कहाँ थे कहाँ आ गये?
पता नहीं था शायद! 
पाने की चाह में खुद को भूल जायेंगे ।

(स्वरचित)
प्रतिभा पाण्डेय "प्रति"
चेन्नई

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