ॐ भूर्भुव: स्व: तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो न: प्रचोदयात्।

पंक्तिया दिल से -हरेंद्र विक्रम सिंह

हम तो तुम्हें समझते अपना पर कुछ तुम भी तो अपना समझो ।
हम तो उलझे तेरे प्यार में ,पर कुछ तुम भी प्यार में उलझो ।।
एक तरफ यह कैसी चाहत जो अंदर ही अंदर रहती है ।
कुछ हम तुमको सुलझाएं कुछ तुम भी खुद से सुलझो।।

हंसता  चेहरा दुनिया  देखे पर तुम मेरी  उदासी  पढ़ लो।
कुछ दिल का दर्द हमें बतलाओ कुछ मेरे दिल से बूझो।।
बंधन की ओ गांठ न खोलो जिससे  मर्यादा  खुल जाये।
जिस यार  की खातिर रिश्ते टूटें ओ प्यार अजब  ही समझो।

छाई है यादों की बदली और कुछ मौसम हुआ सुहाना।
झूम रही मन की हर डाली जब दिल तेरा हुआ दीवाना ।।
वह रात चांदनी मद्धिम -मद्धिम जिसमें कोई इशारा ।
हौले -हौले छत पर आना करके कोई बहाना।।

तेरी सूरत चांद में देखूं कुछ गाकर तुम्हें लुभाना।
जब हल्की-हल्की गिरें फुहारें उसमें तेरा नहाना।।
किसी और पर गाना गाकर पर दिल से मुझे सुनना।
तेरी पायल के घुँघरू की इक अलग ही आहट आना ।।

मेरी धड़कन में रख धड़कन वो दिल का गीत सुनाना ।
याद में तेरी अक़्सर मेरे कुछ अश्कों का आ जाना ।।
बैठ ,परिन्दा, तनहाई में वह गीत पुराने गाना।
दिल का हाल कोई ना समझे बस खुदमें तुमसे बतलाना।।

घायल  परिन्दा

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