ॐ भूर्भुव: स्व: तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो न: प्रचोदयात्।

रावण का पुतला तो-कवि- तुलसीराम 'राजस्थानी'

रावण का पुतला तो
----------------------------
रावण का पुतला तो, हर वर्ष ही जलाते हैं लोग
श्रीराम के चरित्र को, क्यों नहीं अपनाते हैं लोग

बुराईयां त्यागने की, कोई दरकार नहीं समझता
ज्ञान का प्याला अक्सर, पिला ही जाते हैं लोग

दूसरों में कमियां निकालना, फितरत-सी हो गई 
खुद को सुधारने से,,,, क्यों कतरा जाते हैं लोग

सियाराम जीवनभर, कठिनाइयों को झेलते रहे
थोड़ी-सी मुश्किलात में ही, घबरा जाते हैं लोग

मानाकि अपहरण किया, रावण ने मां-सीतां का
नारी-अस्मत कायम रही, क्यों भूल जाते हैं लोग

आदमी की करतूतें आज, इतनी  घिनौनी हो गई
खून के रिश्तों को भी, तार-तार कर जाते हैं लोग 

खुशहाली का आलम था, हर-तरफ रामराज्य में
फिर भी राम पर अंगुली, क्यों उठा जाते हैं लोग

"राजस्थानी" राम जैसा, कोई बनना नहीं चाहता 
रावण का मजाक उड़ाने में, आनंद उठाते हैं लोग.
---------------------------------
कवि- तुलसीराम 'राजस्थानी'

Post a Comment

0 Comments