ॐ भूर्भुव: स्व: तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो न: प्रचोदयात्।

नारी बनाम पुरूष-तुलसीराम "राजस्थानी"

नारी बनाम पुरूष
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राह चलते 
उस सजीव मूर्ति से 
जिसकी आंखों से 
पीड़ा के 
आंसू छलक रहे थे 
वस्त्र फटे हुए 
ह्रदय तार-तार था 
जिसका अंग-अंग 
व्यथित बेशुमार था 
मैंने पूछ लिया 
तुम कौन हो,,,?
उसने चेहरे पर 
आश्चर्यजनक भाव लिए 
मुझे 
अपलक देखते हुए 
अपने अंतर्मन के 
उद्गार प्रकट करते हुए 
कहा- अरे मानुष ! 
तू इतना बदल गया 
अपनी 
औकात तक भूल गया 
आज 
मुझे एहसास हो गया 
तुझे 
कोख से जन्म देना 
मेरा यूं ही फिजूल गया 
सदियां गुजर गई 
कई युग बदल गए 
मगर मैं ना बदली 
जीवन मेरा
खुली किताब रहा 
मैं आज 
नारी नारायणी हूं 
भले ही बेचारी हूं 
तुम पुरुषजात के 
अत्याचारों की मारी हूं 
मगर 
जरा तू ज्ञान कर 
अपने 
अंतर्मन में ध्यान धर 
मैं आदिकाल से
हितकारी हूं
परोपकारी हूं
भले ही बदल गया तूं 
लेकिन 
मैं आज भी 
दुख हरने वाली 
दूसरों को सुख देने वाली 
सृजनहारी ममतामई नारी हूं.
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✍️- तुलसीराम "राजस्थानी"

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