झुलसाती कड़ी थूप , पेड़ भगवान स्वरुप ! छाँव का सुकून , हवा बहती भर जुनून ! शोभा है धरित्री की , श्रृंगार प्रकृति की ! जीवन दायिनी , तुलनीय कामिनी ! नदी बहती पावन , गंगा हैं पाप धोवन ! इनसे दुनिया सारी , कटाई पड़ेगी भारी ! जीवन का आधार अगर प्रेम हैं , पेड़ जीने का आधार है ! मिलकर जन-जन पेड़ लगाओ , हरियाली से जीवन सजाओ ! भक्षिनी कोरोना को आक्सीजन से मार गिराओ !! काटकर पेड़ न छीनों धरती का गहना , जीवन का है ये अमूल्य सोना ! न काटो अपनी सॉस को , न सजाओ अपनी अर्थी को ! लकड़हारा गिरोह के विरोध में, आओ मिलकर आवाज उठाओ। पेड़ हमारी सॉसों की रक्षक है, अंदर के कर्तव्यों को झकझोर जगाओ, नित नए पेड़ लगवाओ लगाओ ।
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