ॐ भूर्भुव: स्व: तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो न: प्रचोदयात्।

-हर-हर गंगे

हर-हर गंगे
श्लोक-

यस्यामलं दिवि यशः प्रथितं रसायां।
भूमौ च ते भुवन मंगल दिग्वितानाम्।
मंदाकिनीति दिवि भोगवतीति चाधो।
गंगेति चेह चरणाम्बु पुनाति विश्वम्।
               ( श्री मद्भागवत१०,७०,४४)
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विधा-चौपाई

विषय-हर-हर गंगे

मातु मालती हर- हर गंगे।
त्रिभुवन तारण तरल तरंगे।१

ज्येष्ठ- मास द्वादस सुखदाई।
गगन मार्ग से सुरसरि आईं।२

विष्णु-पाद के नख से प्रगटी।
शंकर शीश जटा में सिमटी।३

बार -बार नृप वंदन कीन्हा।
हर्षित शिव जी शुभ वर दीन्हा।४

सुर नर मुनि सब महिमा गाते।
मज्जन करते भव तर जाते।५

महापगा हे त्रिपथ गामिनी।
कल- कल बहती रम्य रागिनी।६

माघ- मास में तीर्थ हमारे।
गंगा तट में सभी पधारे।७

धवल धार है दिव्य तुम्हारी।
रक्षा करिए सदा हमारी।८

गंगा महिमा सबसे न्यारी।
सर्व देव को लगती प्यारी।९

पाप विमोचन मंगल कारी।
पावन गंगा जग दुख हारी।१०

मौलिक अप्रकाशित

बुद्धसेन शर्मा भिलाई


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