अखंड सौभाग्य का वर देने, हरतालिका तीज आई है
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मनोरम भाद्रपद शुक्ल तृतीया,
शिव पार्वती गणेश उपासना ।
निर्जला व्रत शीर्ष बेला,
परमता स्पर्श मनोभावना।
अनूप सनातनी आभा तले ,
धर्म आस्था अनंत छाई है ।
अखंड सौभाग्य का वर देने, हरतालिका तीज आई है ।।
पुनीत पावन अभिलाषा,
अंतर्मन अप्रतिम निखार ।
सुरभित जीवन उपवन,
दाम्पत्य सुखद पथ विहार ।
शिव लोक दर्शन चाहना,
रोम रोम शुभता समाई है ।
अखंड सौभाग्य का वर देने, हरतालिका तीज आई है ।।
मां पार्वती हरण काज,
सखी जीवन हुआ धन्य ।
अरण्य बना उपासनिक ठोर,
हर पल बना खुशियां जन्य ।
आत्मसात कर वही भाव,
सबने पार्वती आभा पाई है ।
अखंड सौभाग्य का वर देने, हरतालिका तीज आई है ।।
लोक रंग अठखेलियां,
अनंत उमंग उल्लास ।
गीत नृत्य भजनों संग,
घट घट असीम उजास ।
सर्वत्र महादेव वंदन स्तुति,
हर उर कली मुस्काई है ।
अखंड सौभाग्य का वर देने, हरतालिका तीज आई है ।।
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महेन्द्र कुमार
(स्वरचित मौलिक रचना)
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