शिक्षक दिवस की हार्दिक शुभकामनायें
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गुरु बिन ज्ञान कहाँ से पाऊँ
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गुरु बिन ज्ञान कहाँ से पाऊँ,
बेबस, ढूँढ़ रहा वीरान राहों में,
आह! गुरु की थाह न पाऊँ,
अज्ञान तिमिर में भटक रहा मन,
व्यर्थ बीत रहा सारा जीवन,
गुरु बिना ज्ञान कहाँ से पाऊँ ।
किस राह मिलोगे हे! प्रभु,
कौन सी राह में जाऊँ,
जो मिल जाए गुरु जीवन में,
सारे दुख पल में बिसराऊँ,
कौन से मंत्र पढूँ मैं प्रभु,
कौन से पुष्प मैं लाऊँ
गुरु बिन ज्ञान कहाँ से पाऊँ।
क्षुद्र बहुत हूँ, ज़र्रा हूँ मैं,
तम में डूबा, अज्ञान पर शरमाऊँ ,
एकाकी जीवन, पल पल तुम्हें बुलाऊँ,
हाथ रखो जो आप मस्तक पर,
जीवन पुनः पा जाऊँ ।
गुरु बिन ज्ञान कहाँ से पाऊँ।
मैं मूढ मति डूबा था अहंकार में,
मायाजाल के इस झूठे संसार में,
मोह माया का गेह जो टूटे,(घर )
कूड़ - कपट सब तन से छूटे,
तुझ में ही चित्त बसाऊँ
गुरु बिना ज्ञान कहाँ से पाऊँ।
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रश्मि ममगाईं
स्वरचित मौलिक रचना
गुरुग्राम हरियाणा
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गुरु चरणों में समर्पित दोहे
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मन मेरा मंदिर हुआ, तन पावन संधान,
गुरु चरणों में बैठकर आज मिला है ज्ञान।।
दीप जलाएं ज्ञान के, दूर करें अँधियार।
मार्ग दिखाएं गुरु हमें, ले जाएं भव पार।।
गुरु चरणों को मैं भजूँ, मिल जाए संसार।
गुरु की महिमा क्या कहे, गुरु है अपरम्पार।।
रश्मि ममगाईं
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