ॐ भूर्भुव: स्व: तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो न: प्रचोदयात्।

तस्मै श्री गुरुवे नम:"

"तस्मै श्री गुरुवे नम:"



कौन था गुरु आपका 
ओ महर्षि वाल्मीकि!

वे साधु! 
जिन्होंने आपको 
राम नाम जपने की शिक्षा दी!

वे कुटुम्बीजन! 
जिन्होंने आपके कर्म फल भोग में
सहभागी बनने से इन्कार कर दिया!

वे राम!
जिनके बेटों को आश्रम में
पाल-पोसकर 
आपने उन्हीं से
श्रीराम की सेना को परास्त करवा दिया!

वह तप!
जिसने आपको महर्षि की संज्ञा दिलाई!

क्रौंच विलाप की पीड़ा ही है
यदि आपकी गुरु
तो बोलो न
कि उस मूक क्रन्दन ने जाग्रत किया था 
आपके भीतर चेतना को।

कि सत् चेतना के दम पर ही
आपमें आया था वह साहस
जिसने प्रभु श्रीराम की नाराजगी की
परवाह किए बिना
उनकी परित्यक्ता को
अपना लिया बेटी के रूप में।

कि कविता ही बन गई थी
आपकी गुरु
और आपके भीतर पैठकर
वह कह गई-
कि पीड़ा के सिवा
कविता का दूसरा कोई गुरु नहीं होता।

सो तुमने नहीं बनाए एक भी कवि शिष्य
सोचता हूँ 
हे आदि कवि!
फिर यह कवि-कुल-गुरु 
या उस्ताद-शागिर्द की परम्परा
कहाँ से शुरू हुई!!!

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