तेरी बिगड़ी बनाने ओ खुद आयेंगे।
प्रीति मीरा सी निष्छल करो तो सही
विष को अम्रत बनाने चले आयेंगे।।
सच्चे मन से अगर आप उनको कभी
मानसिक पुष्प ही यदि समर्पित करो।
द्रोपदी की तरह मान कर भ्रात यदि
फाड़ कर अपना आंचल जो अर्पित करो।
आर्त स्वर से पुकारोगे उनको अगर
लाज को फिर बचाने चले आयेंगे।
प्रीति मीरा सी निष्छल करो तो सही
विष को अम्रत बनाने चले आयेंगे
इक कदम ही चलो आप उनकी तरफ
मान कर के उन्हें अपना सच्चा सखा।
सारे जग को भुलाकर अगर पार्थ सा
आप विश्वास यदि कृष्ण का ही रखा।
सारथी बनके ओ आपको युद्ध में
खुद विजय श्री दिलाने चले आयेंगे।
प्रीति मीरा सी निष्छल करो तो सही
विष को अम्रत बनाने चले आयेंगे।।
कठिन से कठिन क्यूं न आये घड़ी
किंतु सद्मार्ग पर आप चलते रहो।
नीतियां आपकी हों विदुर की तरह
न्याय संगत सदा बात कहते रहो।
एक ना एक दिन आप के भी यहां
दौड़ कर साग खाने चले आयेंगे।।
प्रीति मीरा सी निष्छल करो तो सही
विष को अम्रत बनाने चले आयेंगे।।
रचनाकार
रणविजय सिंह सोमवंशी सरल

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