मैं कौन हूं
मैं कौन हूं
मुखर हूं इस प्रश्न पर
ना कि मौन हूं ।
मैं मिट्टी नहीं क्योंकि मां के खून से बना।
मैं जड़ नहीं चेतन हूं
मैं सन्यासी नहीं निभाया है ग्रहस्थ धर्म।
कामुक नही बच्चे हैं मेरे।
सब कुछ प्रकृति और समाज के नियम पर चलकर।
शिक्षक हूं कवि हूं शायर हूं लेखक हूं।
सामाजिक प्राणी हूं समाज से जुड़ा हूं।
कभी-कभी लगता है भीड़ में अकेला खड़ा हूं।
फिर जब कभी कभी पाता हूं अकेला स्वयं को,
और बैठता हूं स्वयं के साथ
तो फिर वही अनुत्तरित प्रशन उभरता है और मैं फिर से पूछ लेता स्वयं से वहीं प्रश्न
मैं कौन हूं
आलोक अजनबी

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