ॐ भूर्भुव: स्व: तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो न: प्रचोदयात्।

शीर्षक:- दिल - प्रतिभा पाण्डेय "प्रति" चेन्नई

शीर्षक:- दिल 



मयूर सा लालायित मन ,
नाचना चाह रहा,
पर,
 दिल पर नित्य बोझ बढ़ता जा रहा,
एक दिल तमाम इच्छाओ का केन्द्र,
सारे भावनाओं को ओढ़ता जा रहा ।

बचपन में पढ़ाई और खेलकूद से प्रेम,
जवानी में अनगिन उगते इच्छाओं से प्रेम, 
साइकिल चलाऊँ, नयी नौकरी करूँ, 
नये पनपे रिश्ते से अगाध प्रेम । 

सेहतमंद भी रहना है ,
रोज दिल के जज्बातों के साथ दौड़ना है,
दिल को शान्त करने के लिए यारों, 
योगा और व्यायाम भी करना है ।

 दिल समय के साथ तदनुकूल हो जाता है,
हर हालात में ढलान पाकर फिसल जाता है ,
बच्ची से शुरू, सच्ची मुहब्बत, माँ के एहसास...विविधताओं से होकर,
प्रौढ़ावस्था में जाकर,
 दिल बूढ़ा हो जाता है ।

भावनाएं, खुशी और गम भरा प्यार है,
प्राकृतिक सौंदर्य, कृत्रिम जीवन ही आधार है, 
सब मोह, माया, रिश्तेदार यहाँ,
दिल भी एक घना संसार है |
पुनश्च,
दिल तो बडा दिलदार है।


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प्रतिभा पाण्डेय "प्रति"
चेन्नई
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