मन था मेरा कोरा कोरा
नयनों से दो घूंट पिला कर
व्रत मेरा क्यूं भंग कर दिया।
तुमने प्रीति का रंग भर दिया।।
पहली बार मिले जब हम तुम
शायद वह यमुना का तट था।
आई थीं तुम जल भरने को
शायद वह कोई पनघट था।।
साथ तुम्हारे थीं जो सखियां
सबने मुझको तंग कर लिया।
तुमने प्रीति का रंग भर दिया।।
हर इक पल लगता युग युग सा।
तुम बिन सब सूना सा लगता।
मधुर मिलन की आस संजोए।
जाने क्या क्या सपने बुनता।
लगता है अब तो पनघट पर
तुमने आना बंद कर दिया।
तुमने प्रीति का रंग भर दिया।।
याद में तेरी पागल बन कर
मयखाने की डगर चल दिए।
नयनों से पीता था लेकिन
अधरों पर अब जाम धर लिये।
तेरा साथ मिला ना फिर तो
बोतल का ही संग कर लिया।
तुमने प्रीति का रंग भर दिया
रचनाकार
रणविजय सिंह सोमवंशी सरल

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