ॐ भूर्भुव: स्व: तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो न: प्रचोदयात्।

जितना खुश पहले रहते थे,क्या उतना रहते हो बाबुल! - सादर बालकवि स्वप्निल शर्मा

जितना खुश पहले रहते थे,क्या उतना रहते हो बाबुल!
यादें मेरी जब आती हैं,बोलो क्या करते हो बाबुल!

खुद के जीवन के खातिर जब,
तुमने न कोई वारिश पाला।
अपनी क्षमता बाहर ,बोलो!
फिर भी दहेज क्यों दे डाला।

मैं तो दहेज बाद नहीं खुश ,क्या तुम खुश रहते हो बाबुल!
यादें मेरी जब आती हैं, बोलो क्या करते हो बाबुल!

छोटी सी इक कुर्सी मेरे,
खातिर तुम लेकर आए थे।
मुझको उसपर बैठ कर के,
सारी बातें सिखलाये थे।

अब केवल उस कुर्सी से ही, क्या कुछ भी कहते हो बाबुल!
यादें मेरी जब आती हैं, बोलो क्या करते हो बाबुल!

माना प्रतिदिन पीटी जाती,
पर तेरा नाती सेती हूं।
फोन तुझे हर बार न करती,
सब कुछ चुप से सह लेती हूं।

कर्ज छोड़कर और किसी का, क्या तुम दुख सहते हो बाबुल!
यादें मेरी जब आती हैं,बोलो क्या करते हो बाबुल!

पहले जैसी नहीं रही ,सब
सुबह शाम करती रहती हूं।
रोज दहेज,गरीबी के मैं,
तानों में मरती रहती हूं।

खेती गिरवी घर है गिरवी, फिर कैसे रहते हो बाबुल!
यादें मेरी जब आती हैं,बोलो क्या करते हो बाबुल!

तुमसे कहती रो मत तुम अब,
मैं खुश बहुत यहां पर रहती।
"सासू मुझसे प्रेम करें अति,
ससुर ननद भी" तुमसे कहती।

आशा है यह झूठ कभी भी, तुम नहीं समझते हो बाबुल!
यादें मेरी जब आती हैं,बोलो क्या करते हो बाबुल!

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सादर
बालकवि स्वप्निल शर्मा
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