शीर्षक:-ऐ काश।
ऐ काश,
किस्मतों का भी व्यापार होता,
उर बिकता दिलों का कारोबार होता,
जितना तड़पता रहा प्रेम, प्रेम के लिए ,
प्रेम का नामोनिशान ना होता,
जितना घुले हो निकल क्यों ना जाते ?
अक्सर तेरी बातें ही मुझको रुलातीं,
जिन्दा तो हैं पर मर गया है दिल ,
हार गई हूँ ,ना पाये गये,
ना तुम्हें भुलाया जाता !
अक्सर पूछ बैठते थे तुम,
क्या देखा मुझमें?
पर क्या देखा ?
समय ही ना मिला सोचें हम।
पूरा हमदम होकर ,
दम निकाल लिया तुमने,
वरना गैरों को क्या पता?
कहाँ से क्षीण हैं हम ?
मेरे साथ दर्द भी दगाबाजी करता है,
नाम उसका लेता है, दर्देगम मुझे देता है।
नुकसान की भरपाई भी ना हुई,
लाचार समय,
वह सफर ही छोड़ देता है,
किसी की हिमाकत ना थी,
मुझसे बोलने की!
तेरा अपशब्द वहम् तोड़ देता है।
प्रेम किसी से नहीं करते हैं लोग,
बहुत हल्के में मुझे भी लेते हैं लोग,
कोई चमत्कार एकाएक चीत्कार करता,
किस्मत को किस्मत से,
किस्मत पर भरोसा बारम्बार होता,
या कभी किसी को,
किसी से प्यार ना होता ।
(स्वरचित)
प्रतिभा पाण्डेय "प्रति"
चेन्नई

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