ॐ भूर्भुव: स्व: तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो न: प्रचोदयात्।

श्रद्धा से श्राद्ध तक, अपनत्व का सरित प्रवाह -महेन्द्र कुमार (स्वरचित मौलिक रचना)

श्रद्धा से श्राद्ध तक, अपनत्व का सरित प्रवाह 
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भाद्रपद आश्विन दिव्यता ,
परम सनातनी इतिहास  ।
पुनीत पावन हिय तरंगिनी,
सर्वत्र अलौकिक उजास ।
पूर्वज नेह अनुबंध काल,
सृष्टि रज रज भाव गवाह ।
श्रद्धा से श्राद्ध तक, अपनत्व का सरित प्रवाह ।।

भाव विभोर जनमानस,
स्मृत कर निज वंश मूल ।
क्षमा याचना आराधना,
ज्ञात अज्ञात त्रुटि भूल ।
माध्य माध्यम जीव जंतु,
परंपरा सेवा दर्श अथाह ।
श्रद्धा से श्राद्ध तक, अपनत्व का सरित प्रवाह ।।

कृतज्ञता विमल श्रृंगार,
मृदुल उर अभिव्यक्ति ।
धर्म कर्म शीर्षस्थ निष्ठा,
ध्येय अहम पितृ तृप्ति ।
सूक्ष्म लोक विमुक्ति राह,
दोष प्रदोष श्री स्वाह ।
श्रद्धा से श्राद्ध तक, अपनत्व का सरित प्रवाह  ।।

अनंत आशीष अर्जन बेला,
सुखद मंगल जीवन निर्माण ।
अर्पण तर्पण पुण्य फलन,
दुख कष्ट जड़ता निर्वाण  ।
सुषुप्त सौभाग्य जागरण ,
श्री वंदन शुभता अपवाह ।
श्रद्धा से श्राद्ध तक ,अपनत्व का सरित प्रवाह ।।

महेन्द्र कुमार
(स्वरचित मौलिक रचना)

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