विद्या अर्थी का जीवन यह, नचिकेता समान बन जाऊं।
हे! मेरे गुरु तुम संदीपन ,मैं कृष्णा हरदम कहलाऊं।
जीवन के यदि मोड़ों पर मैं
भटकूं, गुरुवर आ जाना तुम।
तुमसे सीखा तभी कमाया,
वही कमाई खा जाना तुम।
दिल करता है मेरा अब यह,तेरा सिर फिर से सहलाएं।
हे !हे! मेरे गुरु तुम संदीपन ,मैं कृष्णा हरदम कहलाऊं।
छोटा था मैं जब तुमने तब,
हिंदी पढ़ना सिखलाया था।
चोरी करते पकड़ा था तब,
सही मुझे पथ दिखलाया था।
बरगद नीचे कक्षा हो फिर,तुमसे जी भर खाना खाऊं।
हे! मेरे गुरु तुम संदीपन ,मैं कृष्णा हरदम कहलाऊं।
सादर
बालकवि स्वप्निल शर्मा

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