ॐ भूर्भुव: स्व: तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो न: प्रचोदयात्।

वार्तालाप - प्रतिभा पाण्डेय प्रति चेन्नई

शीर्षक:- वार्तालाप 
क्रोध--  सबल हूँ चिखने चिल्लाने में मैं ।
          आवेश में कस कर बंधी डोर,
           रिश्तो को तोड़ने में ।
           ह्दय की गति तेज कर रक्तचाप को बढ़ाने में।
           संतापयुक्त विकलता की दशा हूँ मैं ।
प्रेम--   दिल की अभिभूत एहसास हूँ मैं ।
          एक अद्भुत शक्ति हूँ, समर्पण सिखाती ।
          प्रेम को प्रेम से महसूस कराती।
          हितकर बन, अजूबी खुशी दिलाती 
          आत्मीयता का आधार हूँ मैं ।
क्रोध-- प्रेम, तु मेरा दुश्मन, 
          टूटकर बिखराती हूँ मैं प्रेम का बंधन ।
          तू मुझे रंचमात्र भी नहीं पसंद ।
प्रेम--  मैं ही साक्षात ईश्वर हूँ ,
         मैं जहाँ, तेरी परछाई ना पहुंच पाये भी वहाँ|
         मुझमें क्रोध समाप्त करने की शक्ति,
         ये क्रोध कर ले तू मेरी भक्ति |

प्रतिभा पाण्डेय "प्रति"
चेन्नई

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