शीर्षक:- गंग डुबकी
सूखे होंठ हाथ में छाले,
कपडे का चिथड़ापन, दाने-दाने के मुहाले,
धन पर सूखा, पर मुहब्बत की वर्षा होती ,
असहनीय दुखों में भी मुंह पर हैं ताले ।
आँखो में सपनों का भण्डार,
ख्वाहिश पूरा करने का ख्याल ,
जेब है खाली पैसे से कंगाल ,
गरीबी ने कर दिया तंगहाल ।
हम गरीबों के अरमान,
अक्सर आँसुओं के सुपुर्द होते हैं ,
लालसा होती बहुत की ,
पर रूपये रफूचक्कर होते हैं ।
गरीबों की आरजू बस कुछ की होती,
मिलता रहे कपड़ा, मकान, रोटी,
हैरान परेशान ना हो कोई बाप,
बिदा करते हुए अपनी बेटी ,
बाकी भजता रहूँ राम का नाम ,
लगाता रहूँ गंग में डुबकी |
(स्वरचित)
प्रतिभा पाण्डेय "प्रति"
चेन्नई


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