ॐ भूर्भुव: स्व: तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो न: प्रचोदयात्।

गजल-॥ प्रेम शंकर ॥ पीलीभीत उत्तर प्रदेश

गजल

चिराग इश्क का हम फिर से जलाने निकले। 
बेवफा शहर में वफा हम निभाने निकले ।। 
मुझे पता है कि नफरती माहौल है कायम । 
अपनी उल्फत से नफरतें हम मिटाने निकले।। 
मुझे पता है कि मेहनत कामयाबी की जड़ । 
सबके जेहन में हम ये बात बसाने निकले।। 
असलहे खून बहाते हैं और कुछ भी नहीं। 
अपने कलम से रकीबी हम मिटाने निकले ।। 
ना उतर सकेगा 'चेतन' का जादू दिलों से जो ।
 अपनी गजलों का हम वो जादू चलाने निकले ।।

दिल में दबी दबी सी उल्फत को क्यूं नहीं कहते। 
प्यार करते हो तो किसी से क्यूं नहीं कहते ।।
 ऐसी भी बेरूखी क्या जो मेरे सामने है। 
मेरे जाने के बाद तुम भी सुकुं से नहीं रहते ।।
 इतना तो तय है तुम मेरे दिल में अकेली हो । 
 तुम्हारे सिवा हम किसी और की चाहत में नहीं बहते ।।
 किस कदर चाहता हूँ तुम्हें कैसे बताऊँ मैं। 
तुम्हारे सिवा हम और के सितम नहीं सहते ।।

॥ प्रेम शंकर ॥
 पीलीभीत उत्तर प्रदेश

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