ॐ भूर्भुव: स्व: तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो न: प्रचोदयात्।

जी रही हूँ-प्रतिभा पाण्डेय "प्रति" चेन्नई

शीर्षक:-जी रही हूँ
ओह हाय !
बहुत व्यस्त हो गए हो तुम अब तो ,
हाँ जिन्दगी में खुशहाल जो हो ,
बीबी, बच्चे, 
बहुत सुंदर परिवार बन गया तुम्हारा तो,
अब क्यूँ भला मैं याद आऊँ तुमको ।

तुम गए तो सही पर गये नहीं क्यूँ ?
मुझमे अधूरा रह गए हो क्यूँ ?
जानती हूँ तुम बिना सोचे,
 बिना याद किये सो जाते हो ,
पर मेरी आँखे सोती ही नहीं क्पूँ ?

ये कमाल है तेरे इश्क का या दस्तूर है बता दो,
दिल तोड़ने का वजह बता दो,
थोड़ा ही सही अपने आप को तो ले जाते,
याद से बार-बार क्यूँ हो सताते ,

बहुत घुटन, बहुत चुभती दर्द है ,
बिन दवा का ये मर्ज है, 
रात का कालापन भयभीत करता ,
सोचती हूँ ये रात ही क्यूँ आता,

अकेली तन्हाई के साथ घुटघुटकर जी रही हूँ ,
तुम्हारे प्यार में दिवालियापन का,
 बोझ लिये फिर रही हूँ ।
समस्या ये नहीं कि तुम जान जाओगे, 
कोई तुम तक ये संदेश पहुंचा दे,
 इस उम्मीद पर जी रही हूँ |

प्रतिभा पाण्डेय "प्रति"
चेन्नई

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