शीर्षक:-इन्सानियत
जिन्दगी की क्या है बुनियाद ?
मरना है एक दिन सबको रखिए याद ,
फितरत हर इंसान की इंसानियत की है ,
पर मर रहा इंसानियत किससे करे फरियाद ।
इंसान से इंसानियत की मांग बस इतनी सी ,
झूठ फरेब से दूर अच्छाई अपनाओ ,
पीड़ित नहीं करो किसी को ,
सबके प्रति दयालु बन ।
अच्छे कर्म का लेखा-जोखा ,
युग-युगांतर तक गाया जायेगा,
बुराई तो मरने के साथ पूरा मर जायेगा ।
मिलना सबसे हो जाता है,
पर इंसानियत से और सच्चे प्रेम से मुलाकात ,
कभी-कभार ही हो पाता है,
मजहब के तराजू पर इंसानियत को तौलते हैं ,
इंसान खुद की इंसानियत को मूल्यहीन बोलता है ।
मैं, तुम से ऊपर है इंसान,
दरअसल भगवान से उच्च है इंसान ,
धरा पर आने को आतुर रहते हमेशा ईश्वर ,
पर अपनी ही इंसानियत बेच खाता है इंसान |
(स्वरचित)
प्रतिभा पाण्डेय "प्रति"
चेन्नई



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