शीर्षक:- सपनें
दरकते बर्फ के पहाड़ सा,
ठण्डक शून्य तापमान सा ,
घुलता पल-पल हर कण -
प्रेम दृश्य मनहर आब सा।
एहसास रसिका-सी हवाओ की घुलन ,
मस्त मदमस्त चातक जोड़ें का मधुर मिलन ।
ठण्डी शीतल अंदर तक कपाने वाली पवन,
याद है क्या तुम्हें हमारा प्यार भरा बीता जीवन ?।
मुझे तो तुम याद हो ,
क्या मैं भी तुम्हे याद हूँ ?
चलो एक बार पुनः
सर्द मौसम में आओ मिलते है ,
जगह सपने में आज जी भर प्यार करते है ।
ना तुम अवसाद लाना; ना हम लायेंगे,
जवाँ मुहब्बत से रजनी को सजायेंगे ।
ये दिल अभी से बाग-बाग हो रहा,
चाँदनी रात; जागरण में बीतेंगे,
तब सपने कैसे आयेंगे ?।
(स्वरचित)
प्रतिभा पाण्डेय "प्रति"
चेन्नई
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