ॐ भूर्भुव: स्व: तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो न: प्रचोदयात्।

शूरवीरों की तीर्थस्थली है, हिंद की महान दीवार

(राजस्थान में अवस्थित कुंभलगढ़ दुर्ग की स्तुति में कुछ पंक्तियां सादर निवेदित हैं _:)
शूरवीरों की तीर्थस्थली है, हिंद की महान दीवार
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शत शत वंदन अभिनंदन ,
मेवाड़ पुनीत पावन धरा ।
प्रताप शौर्य सदा परम,
साक्षात गवाह हर कतरा ।
दर्शन मेवाड़ी आंख उपमा,
कुंभलगढ़ महिमा सदैव अपार ।
शूरवीरों की तीर्थस्थली है, हिंद की महान दीवार ।।

तेरह मई चौदह सौ उनसठ,
अरावली मध्य स्थापना उजास  ।
प्राकृतिक सुरक्षा अभेद चक्र,
प्रेरणा बिंब राणा कुंभा साहस ।
छत्तीस किलो मीटर लंबाई,
ग्यारह सौ मीटर ऊंचाई आकार ।
शूरवीरों की तीर्थस्थली है, हिंद की महान दीवार ।।

पंद्रह फीट चौड़ाई अनुपम ,
अंतर तीन सौ सात मंदिर छवि ।
अवतरण केंद्र राणा प्रताप,
ओज आकर्षण सम रवि ।
स्थापत्य कला मनमोहनी शैली ,
उरस्थ शोभा भव्य गढ़ कटार ।
शूरवीरों की तीर्थस्थली है, हिंद की महान दीवार ।।

संकटकालीन राजधानी आभा,
रक्षित मेवाड़ राजवंश स्वाभिमान ।
निज रक्त हार एक्य दृष्टांत तज,
सदा शिरोमणि अजेय गुणगान ।
आन बान शान अप्रतिम पर्याय,
स्वर्णिम इतिहास ओजस्विता धार ।
शूरवीरों की तीर्थस्थली है, हिंद की महान दीवार ।।

महेन्द्र कुमार
(स्वरचित मौलिक रचना)

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