ॐ भूर्भुव: स्व: तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो न: प्रचोदयात्।

आजादी की कमल रोशनी-

आजादी की कमल रोशनी

आजादी की कमल रोशनी में
आखिर क्या बात रही
अब तक तुम कमल सरीखे
खिल न सके
मेरे कर्तव्यों की गाथा में कुछ
गड़बड़ था या 
तेरे नैतिक दायित्वों में आलस्य
का आलम था ।।
जरा बताओ मैं कुछ हैरान हूं
मैं कुछ परेशान हूं
तुमसे कुछ पूछ रहा हूं
भारत का संविधान हूं ⁉️
आजादी की कमल रोशनी में 
आखिर क्या बात रही
अब तक तुम कमल सरीखे
खिल न सके 
समता रुपी थाली गई परोसी थी
फिर आखिर क्यों तेरे चेहरे
नैन है झुकें झुकें
या तुमने ही अपने को बांध रखा
आलस्य नामक निद्रा में
या तुमने ही अपने को बांध रखा
मन चंगा तो कठौती में गंगा की
नीरस धारा में।।
तुमको मैंने लोकतंत्र की शक्ति दी
अपना राजा अपनी भाग बनाने को
पर रही तुम्हारी आदत सदियों वाली 
दर दर मांगने की 
जरा बताओ मैं कुछ हैरान हूं
मैं कुछ परेशान हूं
कुछ पूछ रहा हूं तुमसे
मैं भारत का संविधान हूं ⁉️
आजादी की कमल रोशनी में
आखिर क्या बात रही
अब तक तुम कमल सरीखे
खिल न सके।।
मेरे कर्तव्यों की गाथा में कुछ
गड़बड़ था या
तेरे नैतिक दायित्वों में आलस्य
का आलम था।।
आजादी की कमल रोशनी में
आखिर क्या बात रही।।

भारत दास"  कौन्तेय"
सतना मध्यप्रदेश

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