गांव की गोधूली बेला!
शाम होते ही गाय भैंस रंभाने लगती हैं क्योंकि उनके मालिक मालकिन के खेत से लौटने का समय हो गया है और अब उन्हें एक बोर (एक बार) बढ़िया सा चूनी चोकर वाला चारा खाने को मिलेगा।
ताल के किनारे चरने वाली बकरियों को बूढ़ी काकी अपनी पोती संग हांक कर लेकर घर जा रही हैं। बकरियां कभी चरते हुए धीरे धीरे चल रही है तो डांट कर डंडा पटकने से में में करती, गले में बंधी छोटी छोटी घण्टियां बजाती हुई एक दूसरे के आगे पीछे दौड़ने लगती हैं।
सभी पक्षी दिन ढलते ही अपने अपने नीड के तरफ लौटने लगते हैं। सारस कतार बनाएं यू उड़ रहे हैं मानों एक लाइन बना रखी है जिसके इधर उधर उड़ना प्रतिबंधित है। सभी तोते झुंड बनाकर खूब जोर जोर से चहचहाते हुए ऐसे जा रहे हैं मानो एक दूसरे से प्लानिग कर रहे हैं कि कल किसके खेत, कौन से पेड़ की तरफ निकलेंगे। गांव के गोयड़हरे बने मंदिर में गांव के पंडित जी दीपक जला कर मंदिर की घंटी घनघना कर बजा रहे हैं। बड़का बाबू बाजार से आकर कुर्सी पर बैठकर गमछा उतार कर पसीना पोछते हुए छुटकी बिटिया को एक लोटा पानी पिलाने के लिए आवाज लगा रहे हैं। बड़की अम्मा बड़के बाबू को आया देखकर पीढ़ी लेकर आकर पास में बैठकर दिन भर की बाते बता रही हैं। बहुरिया दीया जलाकर अंचरा से दीया का गोड़ लाग कर चौखटा पर धर कर दरवाजे की ओट से धीमी आवाज में अम्मा से पूछ रही हैं कि आज रात खाने में क्या बनाऊ?
सारे बच्चे अब तक बाहर ही धमा चकौड़ी मचा रहे थे बड़का बाबू के आने की आहट सुनकर एक एक करके दबे पांव घर आ रहे हैं।
बड़की अम्मा सबको झिड़क रही हैं बिन हाथ गोड़ धोए कोई अंदर मत जाना। बच्चे हाथ पैर धोकर बड़का बाबू के इर्द गिर्द मंडरा रहे हैं क्योंकि पता है कि बाबू जरूर बाजार से कुछ खाने के लिए लेकर आए होगे।
छोटकी बिटिया इशारा पाते ही गाड़ी की डिक्की में से गर्म गर्म जलेबी निकालकर लेकर आती है। अम्मा सबको बराबर बांट रही हैं और बाबू बोल रहे हैं कि सब जलेबी खाकर पढ़ने बैठ जाओ सब बच्चे जलेबी लेकर धीरे धीरे खिसक रहे हैं। बाबू बड़की अम्मा को इशारा करते हैं कि बाकी जलेबी दुल्हनिया को भी दे आवो अबही गर्म है खा कर पानी पी लेगी। अम्मा रुनझुन पायल बजाती धीरे धीरे अंदर चली जाती हैं।
मुकेश चंचल
गड़वार, बलिया-यूपी०
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