ॐ भूर्भुव: स्व: तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो न: प्रचोदयात्।

समांत - ऊरी बुद्धसेन शर्मा

विधा-सजल
समांत - ऊरी
मात्राभार-16 
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मुख  में  राम  बगल  में  छूरी।
नेक   काम  से   रखते   दूरी।।

उल्लू    सीधा    करने    आए।
नहीँ     बताते    बातें     पूरी।।

सुखी   देखना    नहीं   चाहते।
सबको   समझें   भाजी  मूरी।।

नेह   लगाना   विषय  अनूठा।
लगता  है  यह  काम  जरूरी।।

काम घिनौना  सब दिन करते।
बतलाते    इसको    मजबूरी।।

मौलिक अप्रकाशित

बुद्धसेन शर्मा
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