विषय _ सुन मेरी पतंग
विद्या _ कविता
दिनांक _ 14/01/2025
रंग बिरंगी पतंग के देखकर
दिल फिर से हुमकता है ।
बचपन के उन बेफिक्र लम्हों में,
जाने को तरसता है ।
पतंगे अब भी उड़ाई जाती हैं ।
डोरियां अब भी कटती हैं
मगर पहले सी मोहब्बतें
अब कहीं भी नहीं दिखती हैं ।
आओ ! फिर बनाते हैं हम
वही हुड़दंगियों की टोलियां ।
हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई
बन जाए सब हमजोलियां ।
मिट जाए सबके दिलों से
ऊंच-नीच का यह भेदभाव ।
मिलजुल कर उड़ाएं पतंगे हम,
बढ़े आपसी सदभाव ।
सारा आसमां रंगीन कर दें हम
रंग बिरंगी पतंगों से ।
तिल-गुड़ से भी मीठा हो
स्वाद हमारी मोहब्बतों के ।
पूरी दुनिया में मनाया जाने वाला
ये पर्व है संक्रांति ।
भूलके हम धर्म की लड़ाइयां
एकता की लाएं क्रांति ।
आश हम्द, पटना बिहार
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