ॐ भूर्भुव: स्व: तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो न: प्रचोदयात्।

रिश्तों की गरमाहट

" रिश्तों की गरमाहट "


रिश्ते नगमें हैं....
इसे गुनगुनाओ
बेकार की रंजिशों में
जीवन जीने की तपन को
अपने हाथों ना बुझाओ
ऊष्मा बढ़ती है जीवन की
अपनों के संपर्क से
रिश्तों की समीपता से
बुझाना चाहो गर हिया से
दुविधा, ईर्षा, रंजिश को बुझाओ
इनकी पैठ गर हो गई पुष्ट
तो टूट सकती हैं सभी कड़ियां
सहस्त्र वर्षों के प्रयास की
जो जुड़े थे मोती सागर के
माला एक मोती अनेक
बिखर सकते हैं एक पल में
रिश्ते नगमें हैं......
इसे गुनगुनाओ
बेकार की रंजिशों में
जीवन जीने की तपन को
अपने हाथों ना बुझाओ____ Dr kusum Dogra

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