ॐ भूर्भुव: स्व: तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो न: प्रचोदयात्।

मानव नेत्र तथा रंगबिरंगा संसार

 मानव नेत्र (Human Eye)

मानव नेत्र एक ऐसा प्रकाशिक यंत्र है जो एक फोटोग्राफिक कैमरे की भांति कार्य करता है। जिस प्रकार कैमरे में किसी भी वस्तु का वास्तविक प्रतिबिम्ब पर्दे पर प्राप्त होता है ठीक उसी प्रकार से से मानव नेत्र में वस्तु का वास्तविक प्रतिबिम्ब रेटिना पर प्राप्त होता है।मानव नेत्र प्रकृति द्वारा प्रदत्त बहुत ही अनुपम वस्तु है। मानव नेत्र में पलकें ठीक उसी प्रकार कार्य करती हैं जिस प्रकार कैमरा में शटर। 

मानव नेत्र के द्वारा ही हम वस्तुओ को पहचान पाते है,और यह केवल प्रकाश की उपस्थिति से ही संभव है।मानव नेत्र के लेंस की क्षमता 576 MP (मेगा पिक्शल) की होती है। 

मानव नेत्र की संरचना (Sturucture Of Human Eye)  

मानव नेत्र में कई भाग होते हैं और उनके अलग-अलग कार्य भी होते हैं.मानव नेत्र निम्नलिखित भाग हैं –


1.ढृढ़ पटल –

मानव नेत्र लगभग एक खोखले गोले के समान होता है जो बाहर से एक ढृढ़ और अपारदर्शी स्वेत पर्त से ढका रहता है,जिसे ढृढ़ पटल कहते हैं। इसका कार्य नेत्र के भीतरी भागों की सुरक्षा करना होता है। 

2.रक्तक पटल/कोरोइड –

ढृढ़ पटल के नीचे एक काले रंग की झिल्ली पाई जाती है,जिसे रक्तक पटल या कोरोइड कहते हैं। काला होने के कारण यह नेत्र में प्रवेश करने वाली प्रकाश को अवशोषित करके नेत्र में प्रकाश के अपवर्तन से बचाती है। 

3.कार्निया-

मानव नेत्र के सामने का उभरा हुआ भाग एक पारदर्शी झिल्ली से ढका रहता है,जिसे कॉर्निया कहते हैं। नेत्र में प्रवेश करने वाला प्रकाश सर्वप्रथम कॉर्निया से ही होकर जाता है। 

4.आइरिस –

कार्निया के पीछे एक रंगीन एवं अपारदर्शी झिल्ली का पर्दा होता है,जिसे आइरिस कहते हैं। 

5.पुतली/नेत्र तारा –

आइरिस के बीचो बीच एक छोटा सा छिद्र होता है,जिसे पुतली अथवा नेत्र तारा कहते हैं। तीव्र प्रकाश की उपस्थित में आइरिस की मांसपेशियां फ़ैल कर पुतली को छोटा कर देती हैं,जिससे नेत्र में प्रकाश की पर्याप्त मात्रा पहुंच जाती है।

6.नेत्र लेंस –

आइरिस के पीछे एक पारदर्शी ऊतक का बना द्वि-उत्तल लेंस होता है,जिसे नेत्र लेंस कहते हैं।नेत्र लेंस के पिछले भाग की वक्रता त्रिज्या छोटी और अगले भाग की वक्रता त्रिज्या अधिक होती है। नेत्र लेंस पक्ष्माभी मांशपेशियों के बीच में टिका रहता है।  

6.जलीय द्रव –

कॉर्निया और नेत्र लेंस के बीच में जल के समान एक पारदर्शी द्रव भरा रहता है जिसे जलीय द्रव कहते हैं। 

7.रेटिना –

रक्तक पटल के नीचे और नेत्र के सबसे अंदर की ओर एक पारदर्शी झिल्ली लगी होती है,जिसे रेटिना कहते हैं। किसी भी वस्तु का प्रतिबिम्ब सदैव रेटिना पर ही बनता है। रेटिना पर काफी सारी प्रकाश सुग्राही कोशिकाएं होती हैं,जिनमे दो तरह की कोशिकाएं होती हैं -दण्डाकार-प्रकाश की तीव्रता सुग्राही और दूसरा शंक्वाकार -रंगों की सुग्राहिता। 

8.काचाभ द्रव-

नेत्र लेंस और रेटिना के बीच में गाढ़ा,पारदर्शी व उच्च अपवर्तनांक का द्रव भरा रहता है,जिसे काचाभ द्रव  हैं। 

9.अंध बिंदु –

प्रकाश शिराएं,जिस स्थान से रेटिना को भेदकर मष्तिस्क को जाती हैं,अंध बिंदु कहलाती है। इस बिंदु पर प्रकाश की सुग्राहिता शून्य होती है। 

10.पीत बिंदु –

रेटिना के बीचो बीच एक पीला भाग होता है,जहा पर बना प्रतिबिम्ब सबसे ज्यादा स्पष्ट दिखाई देता है,पीत बिंदु कहलाता है। 

मानव नेत्र के कार्य(Working Of Human Eye)

मानव नेत्र लगभग एक फोटोग्राफिक कैमरा की तरह कार्य करता है। मानव नेत्र में कार्निया से जाने वाला प्रकाश नेत्र लेंस की सहायता से सामने रखी वस्तु का वास्तविक प्रतिबिम्ब रेटिना पर बनाता है।

नेत्र की समंजन क्षमता:

नेत्र लेंस के अपनी फोकस दुरी को बढ़ा या घटा पाने की क्षमता को नेत्र की समंजन क्षमता कहते हैं। नेत्र की समंजन क्षमता का एक निश्चित सीमा होता है। स्वस्थ्य नेत्र की लिए स्पष्ट दृष्टि की न्यूनतम दूरी 25cm होती है और स्वस्थ्य नेत्र की लिए स्पष्ट दृष्टि की अधिकतम दूरी अनंत होती है।

दृष्टि दोष और उनका निवारण (Vision Defects and Its Correction):

कभी- कभी नेत्र अपनी समंजन क्षमता धीरे- धीरे खो देता है, जिससे नेत्र को वस्तुए स्पष्ट नहीं दिखाई देती हैं। मानव नेत्र में होने वाले दोष निम्नलिखित हैं –

  1. निकट दृष्टि दोष
  2. दूर/ दीर्घ दृष्टि दोष
  3. जरा- दूरदृष्टिता

निकट दृष्टि दोष(Myopia) 

मानव नेत्र में उपस्थित ऐसा दोष जिसके कारण मनुष्य निकट की वस्तुओ को आसानी से देख सकता है जबकि एक निश्चित दुरी के आगे की वस्तुए स्पष्ट नहीं दिखाई देता है,निकट दृष्टि दोष कहलाता है। इस दोष में नेत्र का दूर दिन्दु अनंत पर न होकर पास आ जाता है। जिससे वस्तु से आने वाले रेटिना पर फोकशित न होकर उससे पहले ही बिंदु P पर फोकस हो जाता है और वस्तु का स्पस्ट प्रतिबिम्ब नहीं दिखाई देता है। 

निकट दृष्टि दोष के कारण(Cause Of Myopia)

निकट दृष्टि दोष के निम्नलिखित दो दोष होते हैं –


इस दोष को दूर करने के लिए एक ऐसे अवतल लेंस का उपयोग किया जाता है जिससे वस्तु से चलने वाली प्रकाश किरणे अवतल लेंस से अपवर्तन के पश्चात नेत्र के समीप बिंदु F पर फोकसित हो जाती है और इस तरह से बिंदु F से चलने वाली लेंस से अपवर्तित होकर रेटिना पर मिलती है और इस प्रकार अनत पर रखी वस्तु का स्पष्ट प्रतिबिम्ब रेटिना पर बन जाता है। 

दूर दृष्टि दोष(Hypermetropia): दीर्घ दृष्टि दोष 

मानव नेत्र में उपस्थित ऐसा दोष जिसमे मनुष्य को दूर की वस्तु तो स्पष्ट दिखाई देती है लेकिन निकट की वस्तु स्पष्ट नहीं दिखाई देती है,दूर दृष्टि दोष या दीर्घ दृष्टि दोष कहलाता है। इस दोष में नेत्र का निकट बिंदु 25cm से अधिक दूर हो जाता है जिससे वस्तु से आने वाला प्रकाश रेटिना पर फोकसित न होकर रेटिना के पीछे फोकसित हो जाता है और नेत्र को वस्तु स्पस्ट नहीं दिखाई देता है।इस दोष को दूर करने के लिए उत्तल लेंस का उपयोग किया जाता है। 

दूर-दृष्टि दोष के कारण(Cause Of Hypermetropia)

दूर-दृष्टि दोष के निम्नलिखित दो कारण होते है –

1.नेत्र लेंस के पृष्ठों के वक्रता का कम हो जाना,जिससे फोकस दूरी बढ़ जाती है। 

2.नेत्र गोलक के ब्यास का कम हो जाना,जिससे नेत्र लेंस और रेटिना के बीच की दूरी कम हो जाती है। 

दूर-दृष्टि दोष का निवारण(Correction Of Hpermetropia)

दूर दृष्टि दोष के निवारण के लिए एक ऐसे उत्तल लेंस का उपयोग किया जाता है,जो निकट रखी वस्तु से चलने वाली किरणों को दूर बिंदु N पर फोकसित कर देती है। इसप्रकार दूर बिंदु N से चलने वाली किरणों का वास्तविक और स्पस्ट प्रतिबिम्ब रेटिना पर बन जाता है और नेत्र द्वारा वस्तु स्पस्ट दिखाई देने लगती है।

जरा-दूरदृष्टिता(Presbyopia)

इस दोष से पीड़ित व्यक्ति को न तो निकट की वस्तु स्पस्ट दिखाई देती है और न ही दूर की वस्तु स्पस्ट दिखाई देती है। 

जरा-दूरदृष्टिता का कारण(Cause Of Presbyopia)

जैसे-जैसे व्यक्ति की आयु बढ़ती है,व्यक्ति की पक्ष्माभी मांशपेशियां कमजोर होने लगती है और धीरे-धीरे नेत्र का लचीलापन घटने लगता है और व्यक्ति निकट और दूर की वस्तु नहीं देख पाता है। अधिकांशतः यह दोष अधिक आयु के लोगो में ही देखने को मिलती है। 

जरा-दूरदृष्टिता का निवारण(Correction Of Presbyopia) 

इस दोष को दूर करने के लिए द्विफोकसी लेंस का उपयोग करते हैं। द्विफोकसी लेंस में एक अवतल लेंस और एक उत्तल लेंस होता है। जिसमे अवतल लेंस द्विफोकसी लेंस के ऊपरी भाग का निर्माण करता है और उत्तल लेंस द्विफोकसी लेंस के निचले भाग का निर्माण करता है।

प्रिज्म क्या है?What Is Prism|Definition Of Prism

परस्पर किसी कोण पर झुके दो समतल पृष्ठों से घिरा हुआ समांगी पारदर्शी माध्यम,प्रिज्म कहलाता है.जिन पृष्ठों से प्रिज्म घिरा होता है,प्रिज्म के अपवर्तक पृष्ठ तथा इन दोनों पृष्ठों के बीच के कोण को प्रिज्म का अपवर्तक कोण कहते हैं। इन अपवर्तक पृष्ठों के अभिलंबवत किसी भी तल द्वारा काटे गए प्रिज्म के परिच्छेद को प्रिज्म का मुख्य परिच्छेद कहते हैं।

प्रिज्म द्वारा प्रकाश का अपवर्तन(Refraction Of Light Through Prism):

निम्न चित्र में कांच का एक प्रिज्म,जिसका मुख्य परिच्छेद ABC से दिखाई गई है। BA और CA इसके दो अपवर्तक पृष्ठ हैं तथा कोण BAC =A इसका अपवर्तक कोण है और BC इसका आधार है। 

माना इस प्रकाश किरण PQ पृष्ठ BA के बिंदु Q पर तिरछी आपतित होता है। LM बिंदु Q पर अभिलम्ब है। चूकि प्रकाश विरल से सघन माध्यम में रही है अतः यह QT मार्ग पर अपवर्तित होकर दूसरे अपवर्तक पृष्ठ CA के बिंदु T पर आपतित होती है। यहाँ MN बिंदु T पर अभिलम्ब है। सघन से विरल माध्यम में जाने पर यह अभिलम्ब MN से दूर हट जाती है और TU मार्ग और चली जाती है। 
आपतित किरण PQ को आगे और निर्गत किरण TU को पीछे बढ़ाने पर दोनों बिंदु R पर मिलती है। 

वर्ण-विक्षेपण क्या है?Dispersion 

सूर्य का श्वेत प्रकाश अनेक रंगो के प्रकाश का एक मिश्रण होता है। जब सूर्य की श्वेत प्रकाश किरण किसी प्रिज्म पर डाली जाती है तो ये अपने अवयवी रंगो में विभाजित हो जाती है,इस घटना को प्रकाश का वर्ण-विक्षेपण कहते हैं। 
वर्ण-विक्षेपण का कारण विभिन्न प्रकार के रंगों का अलग-अलग माध्यम में अलग-अलग होना। 
कांच में बैगनी रंग के प्रकाश की चाल सबसे कम और लाल रंग के प्रकाश की चाल सबसे अधिक होती है,अतः बैंगनी रंग के प्रकाश के लिए अपवर्तनांक सबसे अधिक और लाल रंग के प्रकाश के लिए अपवर्तनांक सबसे कम होता है। 

इन्द्रधनुष(Rainbow)

जब आकाश के किसी एक भाग में सूर्य चमक रहा हो और उसके विपरीत भाग में बारिश हो रहा हो तब यदि कोई व्यक्ति सूर्य की ओर पीठ करके खड़ा हो तो उसे आकाश में सूर्य के स्पेक्ट्रम रंगों वाली एक वृत्ताकार चाप दिखाई देता है,जिसे इंद्रधनुष कहा जाता है। 
इंद्रधनुष में सूर्य की किरणे VIBGYOR के क्रम में व्यवस्थित होती है.
आकाश में इंद्रधनुष बनने का कारण आकाश में उपस्थित जल की गोलीय सूक्ष्म बूंदो द्वारा अपवर्तन,वर्ण-विक्षेपण तथा आंतरिक परावर्तन होता है। 



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