ॐ भूर्भुव: स्व: तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो न: प्रचोदयात्।

आइंस्टीन का द्रव्यमान ऊर्जा समीकरण क्या है| | (Einstein Mass-Energy Equation)

आइंस्टीन का द्रव्यमान ऊर्जा समीकरण क्या है|Einstein Mass-Energy Equation: सन1879 से पहले माना जाता था कि द्रव्यमान और ऊर्जा दो अलग- अलग स्वरुप हैं। यह भी माना जाता था कि द्रव्य अविनाशी है।

आइंस्टीन ने बताया कि द्रव्यमान और ऊर्जा दो अलग अलग स्वरूप नहीं हैं, इन्हे एक दूसरे में परिवर्तित किया जा सकता हैं। इसी के सम्बन्ध में आइंस्टीन ने द्रव्यमान और ऊर्जा के बीच एक समीकरण स्थापित किया जिसे आइंस्टीन का द्रव्यमान – ऊर्जा समीकरण कहते हैं।

द्रव्यमान ऊर्जा समीकरण के अनुसार- द्रव्यमान को ऊर्जा में और ऊर्जा को पुनः द्रव्यमान में परिवर्तित किया जा सकता है।

आइंस्टीन का द्रव्यमान- ऊर्जा समीकरण: 

E=mc2 

को द्रव्यमान ऊर्जा समीकरण कहते हैं।

जहाँ E= ऊर्जा , m= द्रव्यमान , c= प्रकाश की चाल

ऊर्जा संरक्षण का नियम(Law Of Conservation Of Energy):

ऊर्जा संरक्षण के नियम के अनुसार- ऊर्जा को न तो बनाया जा सकता है और न ही नष्ट किया जा सकता है, बल्कि इसे केवल एक रूप से दूसरे रूप में परिवर्तित किया जा सकता है।

संवेग संरक्षण का नियम(Law Of Conservation Of Momentum):

इस नियम के अनुसार- यदि यदि या दो से अधिक वस्तुओ के निकाय पर कोई बाह्य बलबलर्य न करे तो निकाय का कुल संवेग संरक्षित रहता है, इसे संवेग संरक्षण का नियम कहते हैं।

आवेश संरक्षण का नियम क्या है(What is Law Of Conservation Of Charge)

आवेश संरक्षण का नियम क्या है(What is Law Of Conservation Of Charge): आज के इस पोस्ट में हम आवेश संरक्षण के नियम के बारे में जानेंगे। यहाँ पर शब्द आया है। संरक्षण- संरक्षण क्या होता है- संरक्षण का मतलब होता है- नियत या स्थिर।

आवेश क्या होता है?

जब हम आबनूस की छड़ को बिल्ली की खाल से रगड़ते है तो आबनूस की छड़ में अन्य वस्तुओ को अपनी ओर आकर्षित करने का गुण आ जाता है, जिसे आवेश कहा जाता है।

आवेश संरक्षण का नियम(Law Of Conservation Of Momentum):

इस नियम के अनुसार- वैद्युत आवेश को न तो उत्पन्न किया जा सकता है और न ही नष्ट किया जा सकता है, इसे केवल वस्तु से दूसरे वस्तु में स्थानांतरित किया जा सकता है।

जैसे- जब कांच की छड़ को रेशम के कपडे पर रगड़ा जाता है तो कांच की छड़ धनावेशित तथा रेशम का कपडा ऋणावेशित हो जाता है और दोनों पर उत्पन्न आवेश का परिमाण समान होता है। इस प्रक्रिया में कांच की छड़ से कुछ इलेक्ट्रान रेशम के कपडे पर स्थानांतरित हो जाते है जिस कारन कांच की छड़ धनावेशित और रेशम का कपडा ऋणावेशित हो जाता है।

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