कविता -कर्म करता चल
कर्म करता चल बटोही,
कर्म करता चल
राह में कांटे मिले तो,
ध्यान देकर चल।
जिंदगी के इस सफ़र में
कष्ट है हर पल
फूल भी कांटों में खिलते
ये समझ कर चल।
देख कर कांटे कभी भी
ना समझ निर्बल
दुःख देते हर किसी को
जिंदगी में बल।
कर्म से ही हम बदलते
भाग्य की रेखा
स्वाद भी होता सदा है
कर्म का मीठा।
कर्म में किसके लिखा क्या?
जान पायेगा?
कर्म कर पहले तू अपना
मान जायेगा।
जिंदगी के इस सफ़र का
है सुनहरा पल
जी ले ऐसी जिंदगी कि
आज ही हो कल।
रुख हवा का मोड़ देगा
दम भरता चल
कर्म करता चल बटोही
कर्म करता चल।
बांट कर खुशियां सभी में
जीत सबका मन
चार दिन की जिंदगी में
ना किसी से तन।
चल पडेगा एक दिन ले
सिर भर का बोझ
फिर मिलेगा ना कभी ये
जिंदगी का मौज।
ना कटेगी जिंदगी यूं
न मिलेगी मौत
हर तरफ ही भय रहेगा
खौफनाक खौफ
बीज बोता चल प्यार का
बीज बोता चल
फिर मिलेगा ना कभी यह
आज जैसा कल।
रचनाकार -रामबृक्ष बहादुरपुरी,
अम्बेडकरनगर यू पी
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