शीर्षक:-प्रीति की स्नेहिल धार में।
कभी कोई बात इधर-उधर भेज कर देखो ,
कभी खूब रोकर फिर हँस-हँसकर देखो,
कभी किसी को हँसा करके देखो,
कभी किसी को बस चाह करके देखो,
किसी का हिस्सा चट करके देखो,
हद से ज्यादा खाना खा करके देखो,
पानी जैसे जीवन पी करके देखो
किसी रास्ते पर अनायास भटक कर देखो,
बेचैन होकर बड़े होकर देखो,
किसी के लिए कभी खड़े होकर देखो,
घर रोशन रंगोली बना करके देखो,
चिराग जलाकर अंधेरा मिटा करके देखो,
बेमेल बातों से सहमत होकर देखो,
रंगविहीन जीवन में रंग घोलकर देखो,
किसी के इश्क में फना होकर देखो,
किसी का सच्चा प्रेम पाकर देखो,
जरूरतमंद को प्यार दे करके देखो,
एहसान नहीं,
कभी एहसास करा के देखो,
'प्रति' प्रेम है, स्नेहिल धार में,
बह कर के देखो,
आनंद की अनुभूति ना हो तो कहना,
गुदगुदी मन में ना हो तो कहना ।
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प्रतिभा पाण्डेय "प्रति"
चेन्नई
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