ॐ भूर्भुव: स्व: तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो न: प्रचोदयात्।

शीर्षक:- प्रेम नहीं कर पाते-प्रतिभा पाण्डेय "प्रति" चेन्नई

शीर्षक:- प्रेम नहीं कर पाते।


इच्छा और तकलीफ छुपाना,
 फितरत हो गयी है !
तमाम अरमानों पर ताला लगाना,
 मनोवृत्ति हो गयी है !

हर किरदार को बखूबी निभाते हैं ,
आँखों में ऑसू , फिर भी मुस्कुराते हैं!
गांठे बहुत हैं इस दिल में , 
कौन सी छोडूॅ, कौन सी खोलूॅ??
कौन हो अपना, जो खुलकर रो लूॅ,,..!

किसी का कंधा नहीं ,
 किसी का झूठा आश्वासन नहीं चाहिए !
किसी के मोहताज नहीं ,
किसी के अहसानों का कर्ज नहीं चाहिए !

हाल तो बेहाल है फिर भी झूठ बोल रहे हैं ,
झूठे संसार पर गर्व कर रहे हैं !
जीवन धारावाहिक सी हो गयी है ,
बेचैनियाँ  गुनाह करने लगी हैं !
बेपनाह मुहब्बत, कमाल का इन्तजार ,
नसीब में यार नहीं, फिर भी इश्क़ बेशुमार !

बेरुखी सुकून को जार-जार कर रहा ,
महान दिल , फिर भी मुहब्बत कर रहा !
कली फिर से मसल दी जाएगी ,
वक्त की चादर में लपेट दी जाएगी !

प्रेम की तरफ हर स्त्री को मोड़ ,
तकलीफ़ों का ठीकरा अपने सर मड़वाओगे ,
बेक़रारी को अनदेखा कर 
अपनी प्रतिक्रिया ही सबको बतलाओगे ।

इसलिए 
 अपनी रूह बचाते हैं, 
 हर एक से प्रेम नहीं कर पाते हैं !!

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प्रतिभा पाण्डेय "प्रति"
चेन्नई
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