📚📚 धर्म
ध-- धड , म-- मन ,र-- रज्जू (बधन)
ध-- धरती , म-- मन ,र-- रज्जू
( बंधन )
इस मानव शरीर में मन कर्ता है मन के लिए जो उत्तम मार्ग या कर्म चिन्हित किए गये वह धर्म कहे गए एक प्रकार से मन के बंधन !;
क्योकि शरीर ही माया रूप रहता है इसी मे विषय और विषयी इंद्रिया समाहित है!!
एक प्रकार मन पर शासन!!
चित् -- निर्विकार ऊर्जा स्वरूप
मन--- कर्ता , विषय --- कारण
शरीरिक इंद्रिया --- करण ( साधन ) रूप मे होते हैं! !
इस तरह धर्म का एक ही गूढार्थ है शासन मन पर ,जब मन पर शासन हुआ मानव अपने आप नियंत्रित हो जाता है! !
अब मन विषय मे न फसे या आदमी विषय मे न फसे उसके लिए धार्मिक मर्यादा या सामाजिक मर्यादि बनाई गई, यदि गलत करे तो दंड विधान!
अब मानव एक सामाजिक प्राणी होने के नाते इन्हे तीन स्वरुपो मे विकसित किया
1️⃣ स्वशासन / धम्म / नैतिक दायित्व
2️⃣ अनुशासन / सामाजिक मर्यादा / संवैधानिक विधान
3️⃣ प्रशासन / सत्ता धर्म
पर समय कालान्तर मे जब मानव नैतिक मूल्य छोडा तो वह अनुशासन और प्रशासन को दुष्प्रभावी बना दिया! !
सत्ता के लिए अव्यवहारिक नियम बनाए और प्रशासन निरंकुश हो गया !!
धर्म का जब शासन गूढार्थ हुआ तो उसके लिए शिक्षा अनिवार्य है इसलिए धर्म के चार पद कहे गए
१ विद्या २ तप 3 दान 4 सत्य
विद्या से उत्तम कर्म की समझ विकसित होती है ! विद्या बिना संयमित जीवन के सम्भव नहीं है जब विद्या प्राप्त हो जाए तो इसे नि; शुल्क देना है इसलिए कहा गया विद्या दानम् महादानम् फिर विद्या झूठ नही प्रचारित करना या गलत नही देना है यदि विद्या बिगड गयी यानि घर ,परिवार ,समाज, देश को नस्ट कर सकती हैं! ! इसलिए कहा गया एक पुरुष, नारी के विगडने से एक घर नस्ट हो सकता हैं पर यदि गुरु विगड जाए तो पूरा समाज देश नस्ट हो सकता हैं दुर्भाग्य से हमारे देश मे यही हुआ!!
पूर्ण लेख का सार यही है धर्म का
स्वशासित ,अनुशासित, प्रशासित कर्म ही धर्म है!!
लेकिन बिडम्बना हम स्वशासित नही फिर भला अनुशासित कैसे हो सकते है जब यह दोनो नही फिर कैसे अच्छे प्रशासक हो सकते है!
धर्म को इसलिए अलग अलग परिस्थितियों के अनुसार या व्यक्ति अनुसार कहा गया है कौन किस पद के दायित्व को अदा कर रहा है उसका नैतिक दायित्व क्या है!!
मेरे समझ से समाज देश को उन्नत सम्पूर्ण प्रभुत्व बंधुत्व राष्ट्र बनाना है तो !
नैतिक मानव जीवन की समझ होनी चाहिए पर मानव जीवन की समझ नही बल्कि वह जाति ,वर्ग, धर्म नाम को ही नैतिक दायित्व समझ लिया जो एक प्रकार से घोर मूढता भी कहा जाए तो अतिश्योक्ति नही होगी यदि उसे मानव जीवन की नैतिकता समझ नही है!!
इसीलिए धर्म तीन अवस्थायों से गुजरता हैं! !
जो मै समझा उस प्रकार कहा बाकी इतना बडा ज्ञानी नहीं कि धर्म पर प्रकाश डाल सकू!!
🙏🙏
जय ज्ञान जय विज्ञान

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