शीर्षक:-कुछ समझो न जनाब।
सरस्वती,दुर्गा यह, अष्टभुजा धारी हाथ,
पत्नी हो यदि नाराज तो, हाथ जोड़िये नाथ आप।
अनुनय-विनय का सहारा, तभी बनेगी बात ।
भूख पेट की है मिटाती, कुछ समझो ना जनाब।
राक्षसों का संहार रूका, जब शंकर ने जोड़े हाथ।
राधा रानी की प्रीति में, नतमस्तक कृष्ण प्रेम के साथ ।
गौरी की वंदना किये , स्वयं त्रिलोकी बॉधे हाथ।
अपमान नहीं स्वीकार, सम्मान जनक हर बात ,
पत्नी, माँ, बहन, बेटी, से घिरा है हर इंसान ।
तो क्यूँ ना करे सबका सम्मान?
उर-कलुष प्रेम से मिटाये,
रिश्तो की अहमियत समझे, समझाये,
नवरूपा जगदम्बा के सामने, नतमस्तक हो जाये ।
तेरे दायित्वों को स्वीकार किया ,
संकट से तुझे उबार दिया।
तेरी दरिन्दगी को सह कर ,
अवगुणों पर पर्दा किया ।
फिर क्यूँ नहीं चलने को राजी तुम साथ ?
अनबन से नहीं ,
प्रेम से चलता बंधन में बॅधा हाथ ।
विस्तार को समझो, चलने को रहो तैयार ,
पहला कदम आपका ,पीछे पीछे सजाती चलती,
आपका घर- परिवार - संसार |
प्रतिभा पाण्डेय "प्रति"
चेन्नई


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