कविता।........मां!
मेरी पहचान ।
खुली तिजोरी की तरह हम पर प्यार
लुटाती है ,बिना लोभ और स्वार्थ के
हर फर्ज निभाती है।
कभी धूप कभी छाओ की तरह ,
वो मिजाज बदलती है ।
जाने क्यों बिना कुछ कहे,
हर बात समझती है ।
जो दुआ बनके हर रोज खिले ,
मां तो वे सुगंधित कमल का ,
फूल होती है।
किसी शब्द में कहा सामर्थ
जो तेरा व्याक्यान करे ,क्युकी हर
वस्तु ,या जीव की व्याख्या नहीं
होती !
इस संसार में ईश्वर हो या नहीं,
एक छवि उनके होने का एहसास ,
दिलाती हैं.......वो हैं मां!
धड़कन में सांसों की तरह समाई
है मां.......
अनुप्रिया कुमारी

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