ॐ भूर्भुव: स्व: तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो न: प्रचोदयात्।

मां!-अनुप्रिया कुमारी

 कविता।........मां!

मेरी मां मेरी जान कहलाती है , 
        मेरी पहचान ।
        
खुली तिजोरी की तरह हम पर प्यार 
लुटाती है ,बिना लोभ और स्वार्थ के 
     हर फर्ज निभाती है।

कभी धूप कभी छाओ की तरह ,
     वो मिजाज बदलती है । 
जाने क्यों बिना कुछ कहे,
हर बात समझती है ।  

जो दुआ बनके हर रोज खिले ,
मां तो वे सुगंधित कमल का ,
            फूल होती है।
            
किसी शब्द में कहा सामर्थ
जो तेरा व्याक्यान करे ,क्युकी हर 
वस्तु ,या जीव की व्याख्या नहीं
    होती !

इस संसार में ईश्वर हो या नहीं,
एक छवि उनके होने का एहसास ,
दिलाती हैं.......वो हैं मां!

धड़कन में सांसों की तरह समाई
         है मां.......

                                       अनुप्रिया कुमारी

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