ॐ भूर्भुव: स्व: तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो न: प्रचोदयात्।

मधुशाला-स्वरचित श्वेता गर्ग ग्वालियर, मध्य प्रदेश

मधुशाला
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 उठी तलब जब मय की उसको... पहुंँच गया वो मधुशाला
 यही तड़प थी मन में उसके....मिल जाए थोड़ी हाला

 झूठ बोलकर आया सबसे.....ख्वाब था मन में बस छाया
 पैमाना मिल जाए  उसे .... कोई प्यास बुझाने हो वाला 

 ना थी परवाह बच्चों की.... ना प्यार पत्नी का याद आया
 जब मय की बोतल हाथ लगी... होठों तक पहुंँच गई हाला

 जब नशा चढ़ा उस मदिरा का...सुध अपनी भूल वहीं आया
 है पढ़ा लिखा अब कौन कहे.. किस हाल में खुद को था डाला 

 पहले तो मस्ती मस्ती में....वो पहुंँच गया था मधुशाला 
 वो खुद ही समझ ना पाया फिर...कैसे मद ने उसको ढाला

ये नशा बड़ा बेमानी है....ना साथ किसी का दे पाया
 जो पहुंँच गया है मदिरालय... उसका ही भविष्य है काला 

 स्वरचित श्वेता गर्ग    
 ग्वालियर, मध्य प्रदेश

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